ट्रम्प के टैरिफ़ से जूझते भारत और चीन, व्यापारिक रिश्तों में सुधार की कोशिश

नई दिल्ली/बीजिंग।
भारत और चीन, दोनों ही इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ़ नीतियों से परेशान हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा खास महत्व रखती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुलाकात न सिर्फ़ द्विपक्षीय संबंधों में नई दिशा दे सकती है, बल्कि वैश्विक व्यापार संतुलन पर भी असर डाल सकती है।
हाल ही में अमेरिका ने भारतीय हीरे और झींगा जैसे उत्पादों पर 50% तक शुल्क लगा दिया है। ट्रम्प का तर्क है कि भारत रूस से तेल आयात जारी रखे हुए है, इसलिए यह दंडात्मक कदम ज़रूरी था। विश्लेषकों का कहना है कि इन प्रतिबंधों से भारत की निर्यात क्षमता और विकास के लक्ष्यों को दीर्घकालिक झटका लग सकता है।
दूसरी ओर, चीन की अर्थव्यवस्था पहले से ही सुस्त है और उस पर अमेरिकी टैरिफ का दबाव और बढ़ गया है। यही वजह है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी, दोनों, अपने रिश्तों को नया आकार देने की कोशिश में हैं।
भारत-चीन सहयोग की अहमियत
भारत दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी और चीन दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। आईएमएफ की रिपोर्ट बताती है कि भारत अगले कुछ वर्षों में 6% से अधिक की विकास दर बनाए रखेगा और 2028 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
बीजिंग के कारोबारी विशेषज्ञ कियान लियू का कहना है, “अब समय आ गया है कि अमेरिका-चीन संबंधों से आगे बढ़कर, भारत और चीन के बीच सहयोग को प्राथमिकता दी जाए। ये दोनों मिलकर वैश्विक व्यापार को नई दिशा दे सकते हैं।”
फिर भी चुनौतियाँ कम नहीं हैं। सीमा विवाद, 2020 की गलवान झड़प, तिब्बत और जल विवाद जैसे मुद्दों ने आपसी अविश्वास को गहराया है। इसके अलावा, भारत ने टिकटॉक समेत 200 से अधिक चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया और निवेश परियोजनाओं को भी सीमित कर दिया।
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रणनीतिक और क्षेत्रीय समीकरण
मोदी इस बार शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में शामिल होने जा रहे हैं। SCO में भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान और ईरान जैसे देश शामिल हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों में आई खटास ने दिल्ली को इस संगठन की अहमियत समझने पर मजबूर किया है।
साथ ही, ब्रिक्स समूह में भारत और चीन की साझेदारी भी अमेरिका को खटक रही है। ट्रम्प पहले ही ब्रिक्स देशों पर अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने की धमकी दे चुके हैं।
दिल्ली का रुख अब बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर झुकता दिख रहा है, जिसमें भारत और चीन, दोनों, पश्चिमी दबाव से अलग रास्ता तलाशना चाहते हैं।
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आर्थिक सहयोग की संभावनाएँ

भारत अपने विनिर्माण क्षेत्र में तेज़ी लाना चाहता है और इसके लिए उसे चीनी कच्चे माल और पुर्ज़ों पर निर्भर रहना पड़ता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि चीन निवेश और व्यापार पर कुछ रियायतें देता है तो दोनों देशों को फायदा हो सकता है।
एशिया डिकोडेड की मुख्य अर्थशास्त्री प्रियंका किशोर का कहना है, “भारत और चीन में सहयोग की ज़मीन मौजूद है। जैसे, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण बढ़ा रहा है और चीन बाज़ार तक पहुँच चाहता है। तेज़ वीज़ा मंज़ूरी और सीधी उड़ानों की बहाली जैसे कदम इस रिश्ते को मजबूत कर सकते हैं।”
हालांकि मतभेदों की लंबी सूची अभी भी मौजूद है, लेकिन मोदी की यह यात्रा रिश्तों को नई शुरुआत दे सकती है और अमेरिका को यह संदेश भी कि भारत के पास विकल्प मौजूद हैं।
👉 इस तरह, भारत-चीन संबंधों की राह आसान नहीं है, लेकिन दोनों देशों के सामने साझा चुनौतियाँ इतनी बड़ी हैं कि सहयोग से ही इन्हें पार किया जा सकता है।
News source : BBC NEWS
✅ निष्कर्ष
भारत और चीन दोनों ही अमेरिकी टैरिफ़ के दबाव में हैं और यही कारण है कि उनके बीच नज़दीकियाँ बढ़ाने की कोशिश हो रही है। हालाँकि सीमा विवाद, भू-राजनीतिक मतभेद और आपसी अविश्वास जैसी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन साझा आर्थिक हित और वैश्विक दबाव इन्हें बातचीत की मेज़ पर आने के लिए मजबूर कर रहे हैं। मोदी की चीन यात्रा से रिश्तों में तुरंत कोई बड़ा बदलाव भले न हो, लेकिन यह संकेत ज़रूर मिलता है कि भारत और चीन सहयोग के नए रास्ते तलाशने को तैयार हैं। आने वाले समय में यह मुलाकात एशिया और वैश्विक व्यापार के समीकरणों को बदलने वाली साबित हो सकती है।





