Green Hydrogen : भारत की ऊर्जा क्रांति की नई दिशा
आज दुनिया जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता जैसी गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है। ऐसे में Green Hydrogen एक ऐसा विकल्प बनकर उभर रहा है, जो न केवल स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत है बल्कि उद्योग, परिवहन और कृषि जैसे अनेक क्षेत्रों को नई गति देने वाला है। भारत ने भी इस दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए 100 करोड़ रुपये की स्टार्टअप योजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य नवाचारों और अनुसंधान को बढ़ावा देना है।
Green Hydrogen क्या है ?

ग्रीन हाइड्रोजन वह हाइड्रोजन है जिसे नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे सौर और पवन ऊर्जा) की मदद से पानी के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन नहीं होता, इसलिए इसे “ग्रीन” कहा जाता है। यह कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे पारंपरिक ईंधनों का स्वच्छ विकल्प है।
सरकार की नई योजना
11 सितंबर 2025 को नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 100 करोड़ रुपये की ग्रीन हाइड्रोजन स्टार्टअप योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत:
हर परियोजना को अधिकतम 5 करोड़ रुपये तक का समर्थन मिलेगा।
ध्यान उत्पादन, भंडारण, परिवहन और उपयोग से जुड़ी तकनीकों पर होगा।
स्टार्टअप्स को अपने नवाचारों को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पेश करने का मौका मिलेगा।
Vivo V50: अब 9,000 रुपये सस्ता, जानें पूरी डिटेल और ऑफर्स
यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2023 में शुरू किए गए राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (NGHM) को और मजबूत बनाएगा।
राष्ट्रीय Green Hydrogen मिशन (NGHM)

भारत सरकार ने 19,744 करोड़ रुपये की लागत से यह मिशन शुरू किया है, जिसका उद्देश्य भारत को ग्रीन हाइड्रोजन का वैश्विक केंद्र बनाना है। यह मिशन चार स्तंभों पर आधारित है:
1. नीति एवं नियामक ढाँचा
2. माँग सृजन
3. अनुसंधान एवं नवाचार
4. सक्षम अवसंरचना का विकास
इस मिशन का लक्ष्य 2030 तक:
50 लाख मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन का वार्षिक उत्पादन,
125 गीगावाट नई नवीकरणीय क्षमता,
8 लाख करोड़ रुपये का निवेश,
6 लाख नए रोजगार, और
हर साल 5 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन में कमी करना है।
अनुसंधान और नवाचार
पहले चरण में 23 अनुसंधान परियोजनाएँ शुरू की गई हैं, जिनमें बायोमास से हाइड्रोजन उत्पादन, सुरक्षा एवं एकीकरण, और हाइड्रोजन अनुप्रयोग जैसे विषय शामिल हैं।
प्रमुख संस्थान जैसे आईआईटी, आईआईएसईआर और सीएसआईआर प्रयोगशालाएँ इस कार्य में भाग ले रही हैं।
यूरोपीय संघ और भारत मिलकर भी अपशिष्ट जल से हाइड्रोजन उत्पादन पर कार्य कर रहे हैं।
उद्योग और पायलट प्रोजेक्ट्स

भारत में कई क्षेत्रों में ग्रीन हाइड्रोजन को अपनाने की शुरुआत हो चुकी है:
बंदरगाहों पर परियोजनाएँ – तमिलनाडु के वीओ चिदंबरनार बंदरगाह पर भारत की पहली पायलट परियोजना।
इस्पात क्षेत्र – पाँच परियोजनाएँ हाइड्रोजन आधारित डीकार्बोनाइजेशन दिखा रही हैं।
परिवहन – हाइड्रोजन बसें और ईंधन भरने वाले स्टेशन चालू हो चुके हैं।
शिपिंग – जहाजों को रेट्रोफिट किया जा रहा है और तूतीकोरिन बंदरगाह पर ईंधन सुविधा विकसित हो रही है।
उर्वरक उद्योग – भारत ने अपनी पहली ग्रीन अमोनिया नीलामी आयोजित की।
रोजगार और निवेश के अवसर
ग्रीन हाइड्रोजन केवल स्वच्छ ऊर्जा का साधन नहीं है, बल्कि यह एक आर्थिक क्रांति भी है। एनटीपीसी, रिलायंस और आईओसीएल जैसे बड़े उद्यम, साथ ही स्टार्टअप्स और एमएसएमई इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे हैं। इससे:
लाखों नए रोजगार सृजित होंगे।
भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी।
स्वच्छ तकनीक में भारत दुनिया का अग्रणी देश बन सकेगा।
चुनौतियाँ
हालांकि, इस दिशा में कुछ चुनौतियाँ भी हैं:
ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की उच्च लागत।
बड़े पैमाने पर स्टोरेज और ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी।
तकनीकी दक्षता और अनुसंधान पर अधिक निवेश की आवश्यकता।
News source: Rediff money
निष्कर्ष
भारत में Green Hydrogen केवल एक ऊर्जा विकल्प नहीं बल्कि एक आर्थिक और पर्यावरणीय क्रांति का मार्ग है। सरकार की 100 करोड़ रुपये की स्टार्टअप योजना, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन और उद्योग जगत की भागीदारी मिलकर भारत को 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन का वैश्विक केंद्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं। यह न केवल भारत को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करेगा बल्कि रोजगार, निवेश और तकनीकी नेतृत्व का नया द्वार भी खोलेगा।




