भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू हुए कई साल हो चुके हैं। समय-समय पर सरकार इसमें बदलाव करती रहती है ताकि टैक्स सिस्टम को सरल और पारदर्शी बनाया जा सके। हाल ही में सरकार ने GST 2.0 का रोडमैप पेश किया है, जिसमें टैक्स स्लैब को चार कैटेगरी में बांटा गया है –
- 0% (जीरो टैक्स)
- 5%
- 18%
- 40%

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GST 2.0 से क्या होगा असर?
आम जनता को राहत: जीरो और 5% स्लैब की वजह से रोज़मर्रा की जरूरत की चीजें सस्ती रहेंगी।
मिडिल क्लास पर बोझ: 18% स्लैब सबसे बड़ा है, इसलिए इस श्रेणी में आने वाले प्रोडक्ट्स और सर्विसेज महंगी हो सकती हैं।
राजस्व में बढ़ोतरी: 40% स्लैब सरकार की कमाई बढ़ाएगा, जिससे विकास कार्यों में मदद मिलेगी।
बिजनेस में पारदर्शिता: अलग-अलग स्लैब से कारोबारियों को अपने टैक्स कैलकुलेशन में आसानी होगी।
डिजिटल सर्विस महंगी: इंटरनेट, मोबाइल और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर 18% GST से यूज़र्स को थोड़ा महंगा पड़ सकता है।
इन बदलावों का सीधा असर आम लोगों और कारोबारियों दोनों पर पड़ेगा। आइए विस्तार से समझते हैं कि कौन सी चीजें किस स्लैब में आई हैं और इसका फायदा या असर आम जनता पर किस तरह से होगा।
0% (जीरो टैक्स स्लैब) – आम जनता के लिए राहत
जीरो टैक्स स्लैब में वे सामान और सेवाएँ रखी गई हैं जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़ी हैं और आम जनता के लिए ज़रूरी मानी जाती हैं। इसका उद्देश्य गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को राहत देना है।
जीरो टैक्स स्लैब में आने वाली चीजें:
- गेहूं, चावल, दाल, आटा जैसी बुनियादी खाद्य वस्तुएँ
- दूध और डेयरी उत्पाद (बिना ब्रांड वाले)
- सब्ज़ियाँ और फल
- किताबें और नोटबुक
- सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की शिक्षा सेवाएँ
- प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ
इससे यह साफ है कि आम उपभोक्ता को अपनी ज़रूरी चीजों पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं उठाना पड़ेगा।
5% टैक्स स्लैब – कम टैक्स वाली कैटेगरी
इस स्लैब में ऐसे उत्पाद और सेवाएँ आती हैं, जो आम जनता के लिए जरूरी हैं, लेकिन इन्हें जीरो टैक्स से ऊपर रखा गया है। सरकार चाहती है कि इन चीजों पर टैक्स का बोझ कम से कम रहे।
5% स्लैब में आने वाली चीजें:
- क्ड फूड आइटम जैसे बिस्किट, टोस्ट, नमकीन
- रेलवे यात्रा (सामान्य क्लास)
- छोटे रेस्तरां में खाने का बिल
- जूते-चप्पल (₹1000 तक)
- कपड़े (₹1000 तक)
- घरेलू एलपीजी सिलेंडर
- हैंडलूम प्रोडक्ट्स
इस श्रेणी में टैक्स दर कम रखी गई है ताकि आम आदमी की जेब पर ज्यादा असर न पड़े और छोटे कारोबारियों का भी व्यापार चलता रहे।
18% टैक्स स्लैब – मिड-रेंज सामान और सेवाएँ
यह सबसे बड़ा स्लैब माना जाता है क्योंकि अधिकतर वस्तुएँ और सेवाएँ इसी श्रेणी में आती हैं। सरकार का मानना है कि इस श्रेणी में मिड-रेंज और रोज़मर्रा के उपयोग के साथ-साथ कुछ लग्ज़री सेवाएँ भी शामिल होनी चाहिए।
18% स्लैब में आने वाली चीजें:
- मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स
- इंटरनेट सेवाएँ और टेलीकॉम चार्जेज
- एयर कंडीशनर, वॉशिंग मशीन, माइक्रोवेव
- बीमा पॉलिसी और बैंकिंग सेवाएँ
- रेस्टोरेंट (AC और बड़े होटल)
- ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से खरीदी जाने वाली सेवाएँ
- पैक्ड और ब्रांडेड खाद्य वस्तुएँ
इस श्रेणी का सीधा असर मध्यम वर्गीय परिवारों और शहरी उपभोक्ताओं पर होगा।
40% टैक्स स्लैब – लग्ज़री और ‘सिन’ प्रोडक्ट्स
GST 2.0 में सबसे ऊँचा स्लैब 40% का रखा गया है। इसका उद्देश्य लग्ज़री सामान और ऐसी चीजों पर टैक्स बढ़ाना है, जो हेल्थ और सोसाइटी पर नकारात्मक असर डालती हैं।
40% स्लैब में आने वाली चीजें:
- तंबाकू और उससे बने उत्पाद
- शराब (राज्य सरकार टैक्स अलग से वसूलती है)
- महंगी कारें और SUVs
- ज्वैलरी और कीमती धातुएँ
- लग्ज़री होटल (₹7500 प्रति दिन से ऊपर)
- प्राइवेट जेट और याट्स
इस स्लैब का मकसद यह है कि लग्ज़री और नशे से जुड़े उत्पादों पर ज्यादा टैक्स लगाकर सरकार के राजस्व को बढ़ाया जाए।
GST 2.0 को लेकर सरकार का मकसद टैक्स ढांचे को और सरल बनाना है। इसमें रोज़मर्रा की चीज़ों को सस्ता रखा गया है जबकि लग्ज़री और हानिकारक वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाया गया है।
इस बदलाव से जहां गरीब और मिडिल क्लास को कुछ राहत मिलेगी, वहीं लग्ज़री प्रोडक्ट्स खरीदने वालों को ज्यादा कीमत चुकानी होगी।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि GST 2.0 एक बैलेंस्ड टैक्स स्ट्रक्चर है, जो आम लोगों की ज़रूरतों और सरकार के राजस्व दोनों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।




