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विद्यापति सेवा संस्थान ने दी पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी को श्रद्धांजलि

खबर हेडलाइंन:

कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनका परिचय देने में किसी विशेष पहचान की आवश्यकता नहीं होती। ना ही, उन्हें शब्दों में बांधा जा सकता। वे भाषा, साहित्य, स्वर एवं कविता से परे होते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री ‘भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेई जी का व्यक्तित्व उन्हीं में से एक था। ये बातें विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने सोमवार को भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कही।उन्होंने कहा कि राजनेता अटल जी का मानवीय चेतना संपन्न व्यक्तित्व काव्य जगत की ओर से राजनीति को दिया गया एक अनमोल उपहार था। नाम के अनुरूप विकट आंधी-तूफान जन्य परिस्थितियों से जूझ कर देश की मान-प्रतिष्ठा तथा संस्कृति के रक्षक भारत मां के इस सपूत पर समस्त भारतवासियों को आज भी गर्व है। मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमला कांत झा ने मिथिला मैथिली के विकास में स्व वाजपेयी के योगदानों की विस्तार से चर्चा करते हुए उन्हें मिथिला-मैथिली का सच्चा हितैषी बताया। उन्होंने कहा कि हम मिथिलावासियों के लिए यह अत्यन्त गर्व का विषय है कि जिस सदन के पहले संविधान संशोधन प्रस्ताव के तहत पंडित नेहरू ने मिथिला में जमीनदारी उन्मूलन का प्रस्ताव लाया था, उसी सदन के 100वें संशोधन के रूप में अटल जी की सरकार ने करोड़ों मिथिलावासी के माँ की भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर गौरवशाली उपहार प्रदान किया। अपने संबोधन में उन्होंने अटल के सपनों का मिथिला बनाने के लिए पृथक मिथिला राज्य के गठन को जरूरी बताया। वरिष्ठ साहित्यकार मणिकांत झा ने कहा कि छोटी सी अवधि में ही उन्होंने देश के नाम व मिथिला की मान के लिए जो कार्य किए, इतिहास में निर्विवाद रूप से स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। डा महेंद्र नारायण राम ने कहा कि वास्तव में सागर की गहराइयों में हिलोरें लेने वाला, आकाश की ऊंचाइयों को छू लेने वाला अटलजी का बहुआयामी व्यक्तित्व एक साथ कवि, लेखक, दार्शनिक, राजनीतिज्ञ सरीखे विविध आयामों को अपने में समेटे शोभायमान था। प्रो जीवकांत मिश्र ने स्व वाजपेयी को भारतीय दर्शन एवं सांस्कृतिक चेतना को समर्पित व्यक्तित्व बताते हुए मिथिला को सब कुछ देने की चाहत रखने वाला महान व्यक्ति बताया। डा अयोध्या नाथ झा ने उन्हें राजनीति का मर्यादा पुरुषोत्तम बताते कहा कि सत्ता के खेल में राष्ट्रीय एकता का बिखराव उन्हें कतई पसंद नहीं था। गजेंद्र कुमार झा ने संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने के करीब 19 साल बीत जाने के बाद भी मैथिली भाषा में प्राथमिक शिक्षा नहीं शुरू होने पर चिंता जाहिर की। पुरूषोत्तम वत्स ने अपने संबोधन में मैथिली को राज-काज की भाषा बनाये जाने पर बल दिया। संस्थान के मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने कहा कि अनेकता में एकता का संगम, अटल जी के व्यक्तित्व की पहचान थी। इनके व्यक्तित्व में कभी उनका कवि रूप मुखरित हो उठता, तो कभी दार्शनिक रूप। कभी कठोर अनुशासन प्रिय शिक्षक के रूप में दिखते, तो कभी आज्ञाकारी कर्तव्य परायण छात्र के रूप में। एक योग्य राजनीतिज्ञ होने का प्रमाण उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ सरीखे खिताबों से मिल चुका था। यही कारण था कि उम्र के लंबे दहलीज पर पहुंचने के बाद भी उनका सफर समाप्त नहीं हुआ। उनके व्यक्तित्व का निखार कभी थमने का नाम नहीं लिया। वह निरंतर नए-नए रूप बदलकर, नए-नए लक्ष्य लेकर विकास की ओर उस झरने की तरह बढ़ते रहे, जिसका उद्देश्य था-
‘चलना है केवल चलना, जीवन चलता ही रहता है! रुक जाना ही मर जाना है, निर्झर यह झर झर कहता है!!’ मौके पर दिगंबर झा, शंभुनाथ झा, राम विनोद झा, हरकिशोर चौधरी, डा उदय कांत मिश्र, विनोद कुमार झा, प्रो चंद्रशेखर झा बूढ़ा भाई आदि ने भी पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि अर्पित की।

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Author: khabarheadline

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